UPSC Essay topics 2023 in hindi-भारत में कितना जरूरी है सिटीजन चार्टर
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UPSC Essay topics 2023 in hindi-भारत में कितना जरूरी है सिटीजन चार्टर 

भारत में सिटीजन चार्टर कितना जरूरी है, इस पर चर्चा आगे बढ़ाने से पूर्ण यह जान लेना उचित रहेगा कि सिटीजन चार्टर क्या है, इसकी अवधारणा क्या है। वस्तुतः सिटीजन चार्टर की अवधारणा का संबंध सरकारी सेवाओं को जनोन्मुखी, त्वरित एवं दक्ष बनाने से है । जब यह कानून के रूप में हमें प्राप्त होता है, तब इसके तहत सरकारी कार्यालयों में आम नागरिकों के आवेदनों का निपटारा जहां एक निश्चित समय सीमा में किया जाता है, वहीं यह भी मुकर्रर किया जाता है कि किस जनसेवा को कितने समय के भीतर मयस्सर करा देना चाहिए। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि यह वह कानून है, जो सरकारी कार्यालयों में सामने आने वाली परेशानियों के निपटारे में सहायक सिद्ध होता है तथा एक निश्चित समय सीमा में काम के होने की गारंटी सुनिश्चित करता है। सिटीजन चार्टर की अवधारणा के अनुरूप जब कोई कानून प्रभावी होता है, तो उस स्थिति में सरकार की जवाबदेही बढ़ जाती है । 


” वस्तुतः सिटीजन चार्टर की अवधारणा का संबंध सरकारी सेवाओं को जनोन्मुखी, त्वरित एवं दक्ष बनाने से है । ” 

यदि वैश्विक स्तर पर नजर डालें तो सर्वप्रथम सिटीजन चार्टर की अवधारणा को मूर्त रूप देने का श्रेय ब्रिटेन को जाता है। वहां सिटीजन चार्टर की शुरुआत वर्ष 1991 से हुई, जब जॉन मेयर की 

कंजरवेटिव सरकार ने इसे मान्यता प्रदान की। वर्ष 1998 में टोनी ब्लेयर ने ‘सर्विस फर्स्ट’ के नाम से इसे वहां दोबारा लागू किया । ब्रिटेन के बाद अन्य देशों ने भी सरकारी कामकाज में पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से इस तरह के कानून बनाए। भारत में भले ही अभी सिटीजन चार्टर एक केंद्रीय कानून के रूप में सामने नहीं आ पाया है, किंतु इसकी अवधारणा का सूत्रपात हो चुका है और प्रांतीय स्तर पर कानून आकार लेने भी लगे हैं। 

” हमारे देश में विभागीय स्तर पर व्याप्त सुस्ती, कर्मचारियों की कामचोरी की प्रवृत्ति और लोगों को टरकाने की आदत तथा भ्रष्टाचार आदि के कारण एक ऐसी स्थिति देखने को मिल रही है, जिसे हम ‘विभागीय अराजकता’ के रूप में अभिहित कर सकते हैं। ” 

यह प्रश्न अहम है कि भारत में सिटीजन चार्टर जैसे केंद्रीय कानून की आवश्यकता क्या है? वस्तुतः सिटीजन चार्टर की मांग अकारण नहीं उठी है। सरकारी कार्यालयों की दशा किसी से छिपी नहीं है। इन कार्यालयों का चक्कर लगाते-लगाते लोगों की जूतियां घिस जाती हैं, तब कहीं जाकर उनके काम का निपटारा हो पाता है । जो काम 15 दिनों में हो जाना चाहिए, उसमें अगर 15 महीने लग जाएं तो कोई ताज्जुब नहीं। ऐसे में धीरजवान का भी धैर्य जवाब देने लगता है । 

हमारे देश में विभागीय स्तर पर व्याप्त सुस्ती, कर्मचारियों की कामचोरी की प्रवृत्ति और लोगों को टरकाने की आदत तथा भ्रष्टाचार आदि के कारण एक ऐसी स्थिति देखने को मिल रही है, जिसे हम ‘विभागीय अराजकता’ के रूप में अभिहित कर सकते हैं । कहीं भी । ‘कार्य संस्कृति’ (Work Culture) देखने को नहीं मिलती है। छोटे- छोटे कामों के लिए लोगों को महीनों न सिर्फ विभागों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, बल्कि बाबुओं से लेकर अफसरों तक की गणेश परिक्रमा भी करनी पड़ती है । यह एक विद्रूप विभागीय संस्कृति बन गई है, जिससे भारत का आम जनमानस त्रस्त है । इस संस्कृति के परवान चढ़ने से जहां उपभोक्ता अधिकारों का हनन होता है, वहीं भ्रष्टाचार बढ़ने से राष्ट्र का विकास भी अवरुद्ध होता है। इन्हीं सब वजहों से भारत में एक केंद्रीय कानून के रूप में सिटीजन चार्टर की जरूरत महसूस की जा रही है। । 

सिटीजन चार्टर के अनेक फायदे हैं। कामों को निपटाने की समय सीमा निश्चित किए जाने, यानी समयबद्धता को वरीयता दिए जाने से जहां कामकाज में पारदर्शिता बढ़ती है, वहीं सरकारी विभागों की जवाबदेही भी तय होती है। इससे सुशासन को बल मिलता है, तो विभागीय अराजकता पर अंकुश लगता है। कानून के दबाव में विभागों में ‘कार्य संस्कृति’ (Work Culture) विकसित होती है, जिससे विकास को बल मिलता है। जन सेवाओं में दक्षता, त्वरितता एवं पारदर्शिता बढ़ने से इनका जनोन्मुखी स्वरूप विकसित होता है, जिससे आम नागरिक को राहत मिलती है, तो उपभोक्ता हितं और अधिकार संरक्षित होते हैं। इस प्रकार हम एक अच्छी व्यवस्था की तरफ बढ़ते हैं। प्रायः सिटीजन चार्टर के तहत जो प्रावधान निर्धारित किए जाते हैं, उनके अनुसार विभागों को आवेदक को उसके आवेदन की प्राप्ति स्वीकृति देनी होती है, जिसमें आवेदन मिलने की तिथि व समय के साथ आवेदन संख्या का अंकन भी किया जाता है। आवेदन के निस्तारण की एक निश्चित समय सीमा होती है। निश्चित समय सीमा के भीतर आवेदन का निपटारा नहीं करने अथवा सेवा प्रदान न करने की स्थिति में जुर्माने का भी प्रावधान रहता है। यदि आवेदन निरस्त किया जाता है, तो संबंधित अधिकारी को इसके बारे में आवेदक को समुचित कारण बताते हुए सूचित करना पड़ता है । ऐसे प्रावधानों से कामकाज में त्वरितता और पारदर्शिता आती है, जिससे जनता को राहत मिलती है, तो कामों में गति आने से विकास बढ़ता है। भ्रष्टाचार की गुंजाइश भी कम होती है । कहने का आशय यह है कि सिटीजन चार्टर के अनेक सकारात्मक पक्ष हैं और यह जनोपयोगी है। 

यह खुशी का विषय है कि भारत में केंद्रीय स्तर पर न सही, प्रांतीय स्तर पर सिटीजन चार्टर की शुरुआत हो चुकी है। मध्य प्रदेश देश का वह पहला राज्य है, जहां सिटीजन चार्टर की अवधारणा के अनुरूप अगस्त, 2010 में ‘लोक सेवाओं के प्रदान की गारंटी कानून’ की शुरुआत की गई। बिहार में यह कानून 2011 में ‘बिहार लोक सेवा अधिकार कानून’ नाम से लागू किया गया। नाम भले ही अलग-अलग हैं, किंतु मकसद एक ही है, जनसरोकारों से जुड़ी सरकारी सेवाओं की जवाबदेही एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करना। इन कानूनों के अच्छे परिणामों को ध्यान में रखते हुए दूसरे राज्यों यथा- जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, केरल एवं उत्तराखण्ड ने इस दिशा में कदम आगे बढ़ाए। यह इन कानूनों का सकारात्मक प्रभाव है कि अब जनता से सीधे जुड़े विभागों में विभगीय स्तर पर दफ्तरों की दीवारों और वेबसाइटों पर यह स्पष्ट जानकारी दी जा रही है कि किस सेवा में कितना समय लगेगा। यही नहीं, यह भी बताया जा रहा है कि उपभोक्ता के रूप में जनता के क्या अधिकार हैं और वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए क्या करें। 

राज्य स्तर पर जहां-जहां सिटीजन चार्टर की अवधारणा के अनुरूप कानून बने हैं, वहां इसके अच्छे परिणाम तो प्राप्त हो रहे हैं, किंतु राज्यों की अपनी सीमाएं हैं। राज्यों में प्रभावी कानून के दायरे में जनता से जुड़े उन्हीं विभागों को लाया गया है, जो राज्यों के अधिकार क्षेत्र में हैं। जो विभाग और सेवाएं केंद्र सरकार के अधीन हैं, वे दायरे में नहीं आते हैं। इसीलिए एक केंद्रीय कानून की जरूरत महसूस की जा रही है। 

एक लोकतांत्रिक देश में जनता के हित सर्वोच्च होते हैं, जिनका संवर्धन और संरक्षण तभी संभव है, जब सरकारी कामकाज में जवाबदेही और पारदर्शिता हो । इस जवाबदेही और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय स्तर पर सक्षम कानून आवश्यक है। यह सुखद है कि भारत में सिटीजन चार्टर की अवधारणा का सूत्रपात हो चुका है। प्रांतीय स्तर पर कानून आकार लेने लगे हैं, तो केंद्रीय स्तर पर कानून के प्रारूप को लेकर मंथन जारी है। ऐसे में जनता की अपेक्षा जल्द पूर्ण होने की आशा की जा सकती है 

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