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एक दुखी व्यक्ति को ऐसा लगा था कि उसका दुख संसार में सबसे अधिक है। एक बार एक संत से उसकी मुलाकात हो गई। उसने उनसे अपने दुख के बारे में बात की। संत ने उसे सुझाव दिया कि अपने दुख की गठरी को गांव के बाहर के पीपल के पेड़ पर लटका आओ। वहां और लोग भी अपने-अपने दुखों की गठरी लेकर आने वाले हैं, वहीं शायद तुम्हारे दुखों का निवारण हो सके।
अगले दिन वह व्यक्ति पीपल के पेड़ के पास अपने दुखों की गठरी लेकर पहुंचा। उसने देखा कि वहां असंख्य गठरियां लटक रही हैं ।
संत वहीं बैठे थे । उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, “तुम्हारी समस्या यह है कि तुम्हें अपना दुख दूसरों से ज्यादा लगता है। तुम ऐसा कर सकते हो कि यहां जो दूसरी गठरियां लटक रही हैं उनमें से कोई छोटे दुख की गठरी छांट लो और अपनी गठरी वहां लटका आओ।”
वह व्यक्ति पेड़ के पास पहुंचा, लेकिन किसी भी दूसरी गठरी से अपनी गठरी नहीं बदल सका। उसने सोचा अपना दुख तो जाना-पहचाना है। उसके साथ जीने का अभ्यास हो गया है। दूसरे का दुख भले ही छोटा हो, लेकिन पता नहीं कैसा हो ? यह भी हो सकता है कि वह मेरे लिए बड़ा साबित हो । काफी देर तक अनिर्णय की स्थिति में रहकर जब वह अपनी गठरी उठाकर वापस जाने लगा तो संत उसके पास आए और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले कि अपना दुख परिचित होने के कारण ज्यादा सहनीय होता है । इसे दोस्त बनाओ, यह परेशान नहीं करेगा।
Short motivational story in hindi-मृत्यु से डरना कैसा
बहुत पुरानी बात है । एक बार एक महारानी का हार कहीं खो गया । राजा ने नगर में घोषणा करवा दी कि जिस व्यक्ति को हार मिला हो, वह तीन दिन के अंदर वापस कर दे, अन्यथा उसे मृत्युदंड का भागी होना पड़ेगा ।
यह संयोग था कि वह हार एक संन्यासी को मिला था । उसके मन में हार के प्रति कोई आकर्षण नहीं था, मगर फिर भी उसने यह सोचकर हार रख लिया कि कोई ढूंढ़ता हुआ आएगा तो उसे दे देगा।
उसने अगले दिन राजा की घोषणा सुनी, पर वह हार देने नहीं गया। वह अपनी तपस्या में लीन रहा। तीन दिन गुजर गए । चौथे दिन संन्यासी हार लेकर राजा के पास पहुंचा ।
राजा को जब पता चला कि वह तीन दिनों से हार को अपने पास रखे था, तो क्रोधित हो उससे बोला, “क्या तुमने मेरी घोषणा नहीं सुनी थी ?”
संन्यासी ने जवाब दिया, “राजन, घोषणा तो मैंने सुनी थी, पर जानबूझकर हार देने नहीं आया। लोग भी क्या कहते, एक संन्यासी होकर मैं मृत्यु से भयभीत हो गया । ”
संन्यासी की बात पर राजा ने फिर पूछा,, “तो आज चौथे दिन क्यों आए हो ?”
इस पर संन्यासी ने कहा, “मुझे मौत का भय नहीं है। किसी दूसरे की संपत्ति को अपने पास रखना पाप है । मैं संन्यासी हूं, पापी नहीं । ”
संन्यासी का ऐसा उत्तर सुनकर राजा का क्रोध शांत हो गया ।
motivational story in hindi-सादगी सबसे बड़ा गहना
सादगी को संसार में मनुष्य का सुंदरतम गहना माना गया है। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ग्लैडस्टोन बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे । वे अपने कपड़े तक स्वयं ही साफ करते थे और बाजार से सब्जी आदि भी स्वयं साइकिल पर लेकर आते थे ।
एक बार रेलयात्रा के दौरान किसी समाचार पत्र के संपादक ने उनसे किसी स्टेशन पर मिलने की अनुमति मांगी। उन्होंने तुरंत हां कर दी। निर्धारित स्टेशन पर संपादक प्रथम श्रेणी के डिब्बे में प्रधानमंत्री को ढूंढ़ने लगे, पर वे उन्हें कहीं दिखाई नहीं दिए।
अचानक एक युवक ने उनसे पूछा कि क्या आप प्रधानमंत्री को ढूंढ रहे हैं ? वे तो दूसरी श्रेणी के डिब्बे में सफर कर रहे हैं। संपादक महोदय जब वहां पहुंचे तो उन्हें प्रधानमंत्री एक सीट पर अखबार पढ़ते मिले।
संपादक महोदय ने आश्चर्य से पूछा, “आप प्रधानमंत्री होकर भी दूसरे दरजे में सफर कर रहे हैं, वह तो अच्छा हुआ प्रथम श्रेणी में बैठे एक युवक ने मुझे आपका पता बता दिया, नहीं तो मैं शायद ही आपको खोज पाता।” ग्लैडस्टोन बोले, “हां, वहां मेरा बेटा बैठा है, उसी ने आपको मेरे बारे में बताया होगा । ”
संपादक के आश्चर्यचकित होने पर प्रधानमंत्री का उत्तर था, “भाई, मैं एक किसान का बेटा हूं, पर वह तो प्रधानमंत्री का पुत्र है, उसे प्रथम श्रेणी में यात्रा करना सुविधाजनक लगता है और मुझे द्वितीय श्रेणी में । ”
सादगीपूर्ण व्यक्तियों का आचरण अनुकरणीय है ।
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