Inspirational story in Hindi- आधी रात का अतिथि
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Inspirational story in Hindi- आधी रात का अतिथि

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Inspirational story in Hindi- आधी रात का अतिथि


यह देशबंधु चितरंजन दास के पितामह के जीवन से जुड़ा प्रसंग है।चितरंजन दास के पितामह अतिथि सत्कार को धर्म मानते थे। भारतीय संस्कृति में भी अतिथि को देवता माना गया है। प्राचीन ग्रंथों में अतिथि सेवाऔर अतिथि के लिए अपने सर्वस्व-यहां तक कि प्राणों को समर्पित करने से संबंधित कई कथाएं आती हैं। इसीलिए उनके लिए माता-पिता और गुरु केअतिरिक्त अतिथि भी देवता समान था। अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य को उन्होंने निर्देश दे रखा था कि रात या दिन का कोई भी समय हो, द्वार पर आए किसी भी अतिथि का अनादर कदापि नहीं होना चाहिए।


उनकी इस बात का परिवार वाले पालन करते हैं या नहीं, यह जानने के लिए एक बार उन्होंने सबकी परीक्षा लेनी चाही। कड़कड़ाती सर्दी में, आधी रात में उन्होंने बाहर से अपने ही घर के द्वार पर दस्तक दी और पुकार लगाई, “भाई बड़ा भूखा हूं, बड़ी सर्दी है। कुछ खाने को मिलेगा ?”


ऐसी सदी में रजाई का सुख त्यागकर कौन उठे। भीतर से उत्तर आया,”अरे, जाओ यहां से भाई! इतनी रात को, ऐसी सर्दी में कौन तुम्हें भोजन देगा ? चलो. कहीं आगे जाओ।”


तब पितामह ने अपना परिचय दिया। घरवाले हैरान रह गए। सब दौड़े हुएबाहर आए। पितामह ने कहा, “मेरे घर में कोई याचक, कोई अतिथि निराश जाए, इसमें मैं अपना ही दोष मानता हूं।”


उनको अपने परिवारजनों के व्यवहार से गहरा कष्ट हुआ। उन्हें लगा कि उनकी शिक्षा में कोई कमी रह गई है। वह इसे अपनी ही गलती मानते हुए इस दोष के परिमार्जन के लिए उलटे पैर द्वार से ही लौट गए और पांच वर्ष तक प्रायश्चित करते हुए बाहर ही घूमते रहे।

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